पप्पूजी बड़े हुए
(बाल पत्रिका ‘पराग’ में ही प्रकशित हरिकृष्ण तैलंग की एक और यादगार बाल कहानी)
सुबह हुई। पप्पू उठकर आँखें मलता हुआ बिस्तर पर बैठ गया। कमरे में उसने नजर घुमाई, फिर पुकारा, ‘मम्मी, मम्मी’। दो क्षण चुप रहकर उसने फिर इधर-उधर देखा और रोना शुरु कर दिया, ‘मम्मी, मम्मी ...ऊं ऊं ... मम्मी कहाँ हो ? म.. म्मी म.. म्मी, ऊं ऊं ऊं, ओ ओ ओ’। वह इधर-उधर देखता हुआ ऊँचे स्वरों में रो रहा था।
दूसरे कमरे से पापा ने जल्दी-जल्दी हाथ पोंछते हुए कमरे में प्रवेश किया। ‘पप्पू, पप्पू, चुप हो जा बेटा ! मम्मी अभी आती हैं। नंदा, उठो तो। देखो, पप्पू रो रहा है।’ पापा ने पप्पू को गोदी में उठा लिया। पास ही सोई नंदा की चादर उन्होंने खींची और बोले, ‘नंदा, उठो। देखो पप्पू रो रहा है।’
पप्पू रोता ही जा रहा था। पापा ने उसके बिखरे बालों को पीछे हटाया और आँसू पोंछते हुए बोले, ‘चलो तो बेटा, तुम्हारा मुँह धुला दें। मेरा पप्पू तो राजा बेटा है। कहीं राजा बेटे भी रोते हैं।’ कहकर उन्होंने पप्पू के गाल की मिट्ठी ले ली।
नंदा ने चादर से मुँह निकाला। उनींदी आँखों से पप्पू और पापा की ओर देखा। अंगड़ाई ली, करवट बदली और पैर सिकोड़कर फिर आँखें बंद कर लीं। पापा ने नंदा की यह हरकत देखी तो झल्लाकर उसकी चादर एकदम खींच दी। बोले, ‘नंदा, सात बज रहे हैं। उठो, पप्पू रो रहा है। उठकर हाथ मुँह धो लो, पप्पू भी धुला दो। तब तक मैं गैस जलाकर दूध गरम करता हूँ। उठो, उठो, जल्दी उठो।’ पापा का स्वर तेज हो गया था। नंदा हड़बड़ा कर उठी और पलंग पर बैठ गई।
पापा पप्पू को लेकर बाथरूम की ओर चले। ‘लो बेटा, दाँत साफ करो’, बाथरूम में पहुँच कर पापा ने पप्पू को गोद से उतारकर खड़ा कर दिया। पप्पू सुबकता हुआ बोला, ‘पापा, मम्मी कहाँ गईं ?’
‘मम्मी अभी आ जाएंगी, बेटा। तुम ब्रश तो कर लो। लो, यह पेस्ट लो। चीं-चीं तो करो बेटा !’ पापा ने पुचकारते हुए पेस्ट का ट्यूब पप्पू के हाथ में थमा दिया। ट्यूब लेकर पप्पू चुप तो हो गया पर उसकी आँखें इधर-उधर घूम रही थीं। आज मम्मी कहाँ चली गईं ? रोज सवेरे जब वह उठता तो मम्मी उसे उठाकर उसकी मिट्ठी ले लेतीं। वह लाड़ में आकर मम्मी के गले में अपनी बाँहें डाल देता था। वह ही उसका हाथ-मुँह धुलाती थीं। पर आज मम्मी का पता नहीं। वह रो रहा है, फिर भी मम्मी नहीं दिख रहीं। आखिर मम्मी गईं कहाँ ? उसकी आँखें बार-बार बाथरूम के बाहर की ओर घूम जाती थीं। बीच-बीच में वह सिसक उठता।
‘बेटा, टूयूब खोलो न ! दाँतों को साफ करो’, पापा उसे समझा रहे थे।
‘मम्मी गई कहाँ हैं, पापा ?’ पप्पू ने फिर पूछा।
‘मम्मी आ जाएंगी, बेटा ! तुम तब तक ब्रश तो कर लो।’ पापा बड़े लाड़ से बोल रहे थे। पप्पू ने ट्यूब खोलकर दबाया, सफेद पेस्ट बाहर आ गया। उसे ब्रश में लेकर सुबकते हुए वह दाँत घिसने लगा।
‘नंदा’, तेज आवाज में पापा चिल्लाये। उनकी कठोर आवाज से पप्पू सहम गया। ‘जल्दी आओ। पप्पू, नंदा दीदी आकर अभी तुम्हारा मुँह धुलाती है।’ कहते हुए पापा बाथरूम से बाहर निकल गये। पप्पू पेस्ट से दाँत घिस रहा था। पिपरमेंट की गोलियों-सा पेस्ट का स्वाद उसे अच्छा लगता है।
‘पप्पू दाँत साफ कर लिए न ?’ बाथरूम में आते ही नंदा ने पूछा।
‘मम्मी कहाँ गईं दीदी ?’ पप्पू ने रुआंसे स्वर में पूछा। उसे मम्मी की याद सता रही थी।
‘मम्मी अस्पताल में हैं पप्पू। डाॅक्टरनी के पास। वहाँ से वह भैया लायेंगी। तुम जल्दी पेस्ट कर लो, फिर हम अस्पताल चलेंगे’। नंदा ने उल्लास में भर कर कहा।
‘नहीं, नहीं। हम अस्पताल अभी चलेंगे। हमें मम्मी छोड़ गईं। ऊं, ऊं, ...ऊं ...’ पप्पू ने ठुनकना शुरु किया और गुस्से से टूथ पेस्ट का ट्यूब फेंक दिया।
‘हाँ, हाँ चलेंगे न अस्पताल। पर तुम पहले नहा लो, अच्छे कपड़े पहन लो। फिर चलेंगे मम्मी के पास’। ट्यूब उठाकर रखते हुए नंदा ने समझाया। वह पप्पू को कुल्ला कराने की कोशिश कराने लगी। पप्पू ने सिर हिलाकर कुल्ला किया। पानी ऐसा थूका कि नंदा की फ्राॅक गीली हो गई, पर नंदा को गुस्सा नहीं आया। वह समझदार लड़की है और पाँचवीं कक्षा में पढ़ती है। पापा मम्मी के बाद वही घर में बड़ी है। उसे अभी-अभी पापा ने बताया था कि मम्मी को वह रात में अस्पताल छोड़ आये हैं। नंदा जानती थी कि मम्मी किसी दिन अस्पताल जाएंगी। वहाँ से वह एक नन्हा-सा भैया लाएंगी। फिर उसके दो भाई हो जायेंगे। एक की जगह दो भाई हो जाने की कल्पना करके उसे बड़ी खुशी होती थी। इसकी चर्चा वह अपनी सहेलियों से कई बार कर चुकी थी।
नहा-धोकर नंदा और पप्पू किचन में आये। पापा चाय छान रहे थे। नंदा ने उनका चेहरा देखा तो उसे हँसी आ गई। हँसते हुए वह बोली, ‘पापा, आपके चेहरे पर काला-काला क्या लगा है ?’
‘क्या लगा है ? अचकचा कर पापा बोले और केतली नीचे रख गालों पर हाथ फेरने लगे। ‘कालिख लग गई है पापा चेहरे पर, कैसी मूँछें-सी बन गई हैं’ कहते हुए नंदी हँसी से दुहरी हो गई।
पप्पू पापा की ओर आँखें फाड़ कर देख रहा था। फिर ‘पापा मूँछें, पापा मूँछें’ कहता हुआ हँसने लगा। उसकी आँखों की उदासी कम हो गई और चेहरा खिल उठा। पापा भी हँस पड़े। ‘लग गई होगी कालिख ! अभी चाय के लिए तवेली साफ की थी’, कहते हुए उन्होंने टाॅवल से अपना चेहरा पौंछा।
‘हाँ, अब साफ हो गई’, नंदा ने बताया और प्याला सरकाकर अपने सामने रख लिया। दूसरा पप्पू के सामने रख दिया। पापा ने दोनों प्यालों को दूध से भर दिया। फिर अपने प्याले में चाय भरते हुए बोले, ‘पियो, बेटा पियो।’
पप्पू ने पापा की ओर देखा। फिर अपने प्याले की ओर देखकर बोला, ‘नहीं, नहीं पीते दूध ! हमें भी चाय दो।’ पैर फटकारते हुए वह मचल उठा।
‘लो, चाय लो, पर रोओ मत’, कहते हुए पापा ने थोड़ी-सी चाय पप्पू के प्याले में उडे़ल दी।
‘पापा हऊआ खाएंगे। हऊआ’, पप्पू फिर रोने लगा।
‘क्या मुसीबत है। अभी नहीं हऊआ। पहले दूध पी लो, फिर हऊआ खाना !’ पापा ने झुंझलाकर कहा।
‘नहीं, नहीं। हऊआ।’ पप्पू रो पड़ा।
‘अच्छा, अच्छा। बना देते हैं हलुआ’, पापा ने झल्लाकर कहा और कड़ाही ढूँढने लगे।
इतने में काॅल बेल बजी। पापा ने दरवाजा खोला। नौकरानी श्यामा की माँ थी। वह अस्पताल से आई थी।
‘क्या हुआ ?’ पापा एकदम पूछ बैठे। ‘बच्ची हुई’, श्यामा की माँ ने धीमे से उत्तर दिया।
‘क्या मिला, बब्बू मिला क्या’, नंदा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
‘नहीं बेटी, गुडि़या मिली है। पप्पू की छोटी बहन।’ नौकरानी ने किचन में प्रवेश करते हुए कहा।
नंदा कुछ उदास-सी हुई। उसे भाई मिलने की आशा थी। मम्मी ने उसे बताया था कि इस बार भी वह अस्पताल से भैया लायेंगी।
‘पप्पू की माँ कैसी हैं’, पापा ने पूछा।
‘अच्छी हैं’, श्यामा की माँ ने उत्तर दिया। फिर उसने नंदा से कहा, ‘नंदा, तुम और पप्पू तैयार हो जाओ। थोड़ी देर से हम सब अस्पताल चलेंगे।’
‘मम्मी के पास’, पप्पू ने पूछा।
‘हाँ, बेटा’, श्यामा की माँ ने कहा।
थोड़ी देर बाद नंदा और पप्पू बाल सँवार कर, अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो गये। श्यामा की माँ ने दूध की बोतल तथा अन्य चीजें थैली में रखीं और नंदा व पप्पू से चलने के लिए कहा। पप्पू जूते पहनकर पापा के पास पहुँचा। पापा अखबार पढ़ने में तल्लीन थे। कुछ क्षण चुपचाप खड़े रहकर उसने पापा को हिला दिया और बोला, ‘हम अस्पताल जाएँ पापा ? मम्मी को बुला लाएँ ?’ पापा चौंक पड़े।
‘हाँ, बेटा। हो आओ अस्पताल। पर मम्मी को अभी मत लाना। चार-पाँच दिन बाद आएंगी मम्मी’, पापा ने पप्पू के गाल थपथपाते हुए प्यार से कहा।
‘नहीं पापा, हम मम्मी को लाएंगे। उनके बिना हमें अच्छा नहीं लगता है।’ पप्पू ने भारी गले से कहा।
‘अच्छा, अच्छा। अभी तो जाओ। नंदा, लो यह रुपया। तुम लोग कुछ खरीद लेना’, पापा ने सौ रुपये का नोट नंदा को देते हुए कहा।
आॅटो में बैठकर वे लोग अस्पताल पहुँचे। रास्ते भर पप्पू और नंदा बातें करते रहे। अस्पताल आया तो वे लोग आॅटो से उतरे। पप्पू की उंगली नंदा ने पकड़ ली। बहुत से लोग आ-जा रहे थे। कइयों के हाथों में दवाइयाँ और डाॅक्टर के परचे थे। कभी-कभी नर्सें बगल से खटपट खटपट करतीं तेजी से निकल जातीं। सफेद स्वच्छ कपड़ों में तनकर चलने वाली स्मार्ट नर्सें पप्पू को बड़ी अच्छी लगीं।
तीन-चार बरांडे और कई कमरे पार कर श्यामा की माँ के साथ नंदा और पप्पू एक कमरे में घुसे। लोहे के पलंग पर मम्मी लेटी हुई थीं। नंदा तो सीधे जाकर मम्मी के पास खड़ी हो गई पर पप्पू कुछ दूर से ही मम्मी को टुकुर टुकुर ताकने लगा। उसकी आँखों में आश्चर्य तैर आया था और चेहरा गंभीर हो उठा था।
सफेद, रूखे से चेहरे वाली मम्मी उसे अजीब लग रही थीं। ऐसा तो उसने मम्मी को पहले कभी नहीं देखा था।
‘आ गईं, नंदा’, मम्मी बोली और उन्होंने मुस्कराकर पप्पू को बुलाया, ‘आओ, पप्पू देखो यह छोटी-सी गुड़िया। तुम इसे खिलाओगे न ?’ मम्मी अपने बगल में लेटी बच्ची की ओर इशारा कर कह रही थीं।
पप्पू सहमा-सा मम्मी के पलंग के पास आकर खड़ा हो गया। नंदा ने उसे उठाकर पलंग पर बिठा दिया। पप्पू ने देखा, सफेद कपड़ों में लिपटा एक छोटा-सा लाल चेहरा आँखें बंद किये हुए पड़ा हुआ है। एक छोटी गुड़िया-सी दिख रही थी वह। पप्पू उसे घूरकर देखने लगा।
इतने में ही डाॅक्टरनी राउंड लेने आईं। वह मम्मी के पलंग के पास आकर पूछने लगीं, ‘कहिए, कैसी तबियत है आपकी ?’
‘ठीक है। थोड़ा कमर में दर्द हो रहा है।’ मम्मी ने उत्तर दिया, ‘अच्छा, एक इंजेक्शन लगवा देती हूँ। यह आपका बाबा है ?’ पप्पू की ओर इशारा कर डाॅक्टरनी ने पूछा।
‘हाँ, यह मेरा पप्पू है’, मम्मी ने उत्तर दिया।
‘बड़ा प्यारा है’, कहते हुए डाॅक्टरनी ने पप्पू के गालों पर हाथ फेरा। उसने सहमकर अपना सिर पीछे कर लिया।
‘क्यों पप्पू, गुड़िया को खिलाओगे न ? यह तुम्हारी छोटी-सी नन्ही बहन है। अब तो तुम भाई साहब बन गए हो।’ डाॅक्टरनी ने पप्पू से कहा।
पप्पू ने समझदार लड़कों की तरह अपना सिर हिलाया। डाॅक्टरनी मुस्कराती हुई चली गई।
अब पप्पू का मुँह खुला। बोला, ‘मम्मी, यह गुड़िया उन्होंने दी है ?’ और उसने जाती हुई डाॅक्टरनी की ओर इशारा किया। ‘हाँ, बेटा। अच्छी है न ? तुम भाई साहब बन गये हो। बड़े हो गये हो तुम अब।’ मम्मी ने प्यार भरे शब्दों में कहा।
पप्पू खुश हो गया। वह अब भाई साहब बन गया है। गुड़िया उसे ‘भाई साहब’ कहेगी, पप्पू ने सोचा। उसके चेहरे पर गर्व झलक आया। आँखों में प्यार भर आया और ललक भरी आँखों से उसने गुड़िया की ओर देखा।
थोड़ी देर बाद श्यामा की माँ के साथ नंदा और पप्पू चलने लगे तो मम्मी ने दोनों बच्चों को समझाया, ‘नंदा, तुम पापा और पप्पू का काम कर दिया करो। घर की फिक्र रखना। और पप्पू तुम बेटा, तंग मत करना नंदा दीदी को। अब तुम बड़े हो गये हो। अपना काम खुद कर लिया करो और रोना मत बेटा’, मम्मी ने बड़े दुलार से पप्पू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
पप्पू ने गंभीरता से अपना सिर हिला दिया।
‘मम्मी, तुम घर कब आओगी ?’ पप्पू ने पूछा। उसका गला भर आया था।
‘जल्दी ही आऊंगी बेटा। तीन-चार दिन में ही। अब तुम लोग घर जाओ।’ मम्मी ने कहा।
श्यामा की माँ, नंदा और पप्पू पैदल ही घर की ओर चल पड़े। घर कोई दूर नहीं था और कोई जल्दी भी नहीं थी।
‘कित्ती-सी है गुड़िया !’ पप्पू बोला।
‘हाँ, बिल्कुल गुड़िया-सी’, नंदा ने उत्तर दिया।
‘पर अभी आँखें नहीं खोलती’, पप्पू और नंदा अपस में मुन्नी की बातें करते चल रहे थे।
सड़क के किनारे एक खिलौने वाला दिखाई दिया। कई तरह के खूबसूरत खिलौने सजे-सजाये रखे थे। नंदा और पप्पू खड़े होकर उन्हें देखने लगे। तरह-तरह के जानवर, पक्षी, गुड्डे और गुड़िया रखे हुए थे। पप्पू को एक गुड़िया पसंद आई। उसने नंदा से कहा, ‘दीदी, यह गुड़िया ले लो। हम, तुम और मुन्नी मिलकर खेलेंगे।’
गुड़िया बड़ी सुंदर थी। हरे रंग की स्कर्ट, गुलाबी रंग का टाॅप और सुनहरे रंग के गहने पहने गुड़िया बड़ी प्यारी लग रही थी। नंदा ने वह गुड़िया खरीद ली और पप्पू को दे दी। पप्पू कुछ क्षण तक आँखें मटकाता प्रसन्न मुद्रा में उसे ताकता रहा। नंदा ने जब उसका हाथ खींचते हुए चलने को कहा तब उसका ध्यान टूटा।
गुड़िया बगल में दबाये पप्पू घर आया। पापा ने दरवाजा खोलते हुए पूछा, ‘आ गये ! देख आये गुड़िया को ? कहो ! कैसी लगी ?’
‘गुड़िया अच्छी है पापा। वह हमें भाई साहब कहेगी। अब हम बड़े हो गये ... हैं न, नंदा दीदी ?’ पप्पू ने नंदा की ओर देखकर कहा और आगे बढ़कर गुड़िया टेबल पर रख दी। फिर अपने जूतों के लैस खोलने लगा।
‘अच्छा, तुम्हें भाई साहब कहेगी गुड़िया ! अरे वाह ! अब तो तुम भाई साहब बन गये। अरे, यह क्या लाए ? देखें तो’, कहते हुए पापा गुड़िया उठाकर देखने लगे।
‘अरे, अरे। वहीं रखी रहने दीजिये। गुड़िया गिर पड़ी तो उसे अस्पताल भेजना पड़ेगा न’, पप्पू ने तेज स्वर में बड़े रौब से कहा।
‘ओहो ! अब तुम बड़े हो गये हो न, भाई साहब !’ गुड़िया ज्यों की त्यों मेज पर रखते हुए पापा बोले।
चार साल के पप्पू की ओर वह आँखें फाड़कर देख रहे थे।
दूसरे कमरे से पापा ने जल्दी-जल्दी हाथ पोंछते हुए कमरे में प्रवेश किया। ‘पप्पू, पप्पू, चुप हो जा बेटा ! मम्मी अभी आती हैं। नंदा, उठो तो। देखो, पप्पू रो रहा है।’ पापा ने पप्पू को गोदी में उठा लिया। पास ही सोई नंदा की चादर उन्होंने खींची और बोले, ‘नंदा, उठो। देखो पप्पू रो रहा है।’
पप्पू रोता ही जा रहा था। पापा ने उसके बिखरे बालों को पीछे हटाया और आँसू पोंछते हुए बोले, ‘चलो तो बेटा, तुम्हारा मुँह धुला दें। मेरा पप्पू तो राजा बेटा है। कहीं राजा बेटे भी रोते हैं।’ कहकर उन्होंने पप्पू के गाल की मिट्ठी ले ली।
नंदा ने चादर से मुँह निकाला। उनींदी आँखों से पप्पू और पापा की ओर देखा। अंगड़ाई ली, करवट बदली और पैर सिकोड़कर फिर आँखें बंद कर लीं। पापा ने नंदा की यह हरकत देखी तो झल्लाकर उसकी चादर एकदम खींच दी। बोले, ‘नंदा, सात बज रहे हैं। उठो, पप्पू रो रहा है। उठकर हाथ मुँह धो लो, पप्पू भी धुला दो। तब तक मैं गैस जलाकर दूध गरम करता हूँ। उठो, उठो, जल्दी उठो।’ पापा का स्वर तेज हो गया था। नंदा हड़बड़ा कर उठी और पलंग पर बैठ गई।
पापा पप्पू को लेकर बाथरूम की ओर चले। ‘लो बेटा, दाँत साफ करो’, बाथरूम में पहुँच कर पापा ने पप्पू को गोद से उतारकर खड़ा कर दिया। पप्पू सुबकता हुआ बोला, ‘पापा, मम्मी कहाँ गईं ?’
‘मम्मी अभी आ जाएंगी, बेटा। तुम ब्रश तो कर लो। लो, यह पेस्ट लो। चीं-चीं तो करो बेटा !’ पापा ने पुचकारते हुए पेस्ट का ट्यूब पप्पू के हाथ में थमा दिया। ट्यूब लेकर पप्पू चुप तो हो गया पर उसकी आँखें इधर-उधर घूम रही थीं। आज मम्मी कहाँ चली गईं ? रोज सवेरे जब वह उठता तो मम्मी उसे उठाकर उसकी मिट्ठी ले लेतीं। वह लाड़ में आकर मम्मी के गले में अपनी बाँहें डाल देता था। वह ही उसका हाथ-मुँह धुलाती थीं। पर आज मम्मी का पता नहीं। वह रो रहा है, फिर भी मम्मी नहीं दिख रहीं। आखिर मम्मी गईं कहाँ ? उसकी आँखें बार-बार बाथरूम के बाहर की ओर घूम जाती थीं। बीच-बीच में वह सिसक उठता।
‘बेटा, टूयूब खोलो न ! दाँतों को साफ करो’, पापा उसे समझा रहे थे।
‘मम्मी गई कहाँ हैं, पापा ?’ पप्पू ने फिर पूछा।
‘मम्मी आ जाएंगी, बेटा ! तुम तब तक ब्रश तो कर लो।’ पापा बड़े लाड़ से बोल रहे थे। पप्पू ने ट्यूब खोलकर दबाया, सफेद पेस्ट बाहर आ गया। उसे ब्रश में लेकर सुबकते हुए वह दाँत घिसने लगा।
‘नंदा’, तेज आवाज में पापा चिल्लाये। उनकी कठोर आवाज से पप्पू सहम गया। ‘जल्दी आओ। पप्पू, नंदा दीदी आकर अभी तुम्हारा मुँह धुलाती है।’ कहते हुए पापा बाथरूम से बाहर निकल गये। पप्पू पेस्ट से दाँत घिस रहा था। पिपरमेंट की गोलियों-सा पेस्ट का स्वाद उसे अच्छा लगता है।
‘पप्पू दाँत साफ कर लिए न ?’ बाथरूम में आते ही नंदा ने पूछा।
‘मम्मी कहाँ गईं दीदी ?’ पप्पू ने रुआंसे स्वर में पूछा। उसे मम्मी की याद सता रही थी।
‘मम्मी अस्पताल में हैं पप्पू। डाॅक्टरनी के पास। वहाँ से वह भैया लायेंगी। तुम जल्दी पेस्ट कर लो, फिर हम अस्पताल चलेंगे’। नंदा ने उल्लास में भर कर कहा।
‘नहीं, नहीं। हम अस्पताल अभी चलेंगे। हमें मम्मी छोड़ गईं। ऊं, ऊं, ...ऊं ...’ पप्पू ने ठुनकना शुरु किया और गुस्से से टूथ पेस्ट का ट्यूब फेंक दिया।
‘हाँ, हाँ चलेंगे न अस्पताल। पर तुम पहले नहा लो, अच्छे कपड़े पहन लो। फिर चलेंगे मम्मी के पास’। ट्यूब उठाकर रखते हुए नंदा ने समझाया। वह पप्पू को कुल्ला कराने की कोशिश कराने लगी। पप्पू ने सिर हिलाकर कुल्ला किया। पानी ऐसा थूका कि नंदा की फ्राॅक गीली हो गई, पर नंदा को गुस्सा नहीं आया। वह समझदार लड़की है और पाँचवीं कक्षा में पढ़ती है। पापा मम्मी के बाद वही घर में बड़ी है। उसे अभी-अभी पापा ने बताया था कि मम्मी को वह रात में अस्पताल छोड़ आये हैं। नंदा जानती थी कि मम्मी किसी दिन अस्पताल जाएंगी। वहाँ से वह एक नन्हा-सा भैया लाएंगी। फिर उसके दो भाई हो जायेंगे। एक की जगह दो भाई हो जाने की कल्पना करके उसे बड़ी खुशी होती थी। इसकी चर्चा वह अपनी सहेलियों से कई बार कर चुकी थी।
नहा-धोकर नंदा और पप्पू किचन में आये। पापा चाय छान रहे थे। नंदा ने उनका चेहरा देखा तो उसे हँसी आ गई। हँसते हुए वह बोली, ‘पापा, आपके चेहरे पर काला-काला क्या लगा है ?’
‘क्या लगा है ? अचकचा कर पापा बोले और केतली नीचे रख गालों पर हाथ फेरने लगे। ‘कालिख लग गई है पापा चेहरे पर, कैसी मूँछें-सी बन गई हैं’ कहते हुए नंदी हँसी से दुहरी हो गई।
पप्पू पापा की ओर आँखें फाड़ कर देख रहा था। फिर ‘पापा मूँछें, पापा मूँछें’ कहता हुआ हँसने लगा। उसकी आँखों की उदासी कम हो गई और चेहरा खिल उठा। पापा भी हँस पड़े। ‘लग गई होगी कालिख ! अभी चाय के लिए तवेली साफ की थी’, कहते हुए उन्होंने टाॅवल से अपना चेहरा पौंछा।
‘हाँ, अब साफ हो गई’, नंदा ने बताया और प्याला सरकाकर अपने सामने रख लिया। दूसरा पप्पू के सामने रख दिया। पापा ने दोनों प्यालों को दूध से भर दिया। फिर अपने प्याले में चाय भरते हुए बोले, ‘पियो, बेटा पियो।’
पप्पू ने पापा की ओर देखा। फिर अपने प्याले की ओर देखकर बोला, ‘नहीं, नहीं पीते दूध ! हमें भी चाय दो।’ पैर फटकारते हुए वह मचल उठा।
‘लो, चाय लो, पर रोओ मत’, कहते हुए पापा ने थोड़ी-सी चाय पप्पू के प्याले में उडे़ल दी।
‘पापा हऊआ खाएंगे। हऊआ’, पप्पू फिर रोने लगा।
‘क्या मुसीबत है। अभी नहीं हऊआ। पहले दूध पी लो, फिर हऊआ खाना !’ पापा ने झुंझलाकर कहा।
‘नहीं, नहीं। हऊआ।’ पप्पू रो पड़ा।
‘अच्छा, अच्छा। बना देते हैं हलुआ’, पापा ने झल्लाकर कहा और कड़ाही ढूँढने लगे।
इतने में काॅल बेल बजी। पापा ने दरवाजा खोला। नौकरानी श्यामा की माँ थी। वह अस्पताल से आई थी।
‘क्या हुआ ?’ पापा एकदम पूछ बैठे। ‘बच्ची हुई’, श्यामा की माँ ने धीमे से उत्तर दिया।
‘क्या मिला, बब्बू मिला क्या’, नंदा ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
‘नहीं बेटी, गुडि़या मिली है। पप्पू की छोटी बहन।’ नौकरानी ने किचन में प्रवेश करते हुए कहा।
नंदा कुछ उदास-सी हुई। उसे भाई मिलने की आशा थी। मम्मी ने उसे बताया था कि इस बार भी वह अस्पताल से भैया लायेंगी।
‘पप्पू की माँ कैसी हैं’, पापा ने पूछा।
‘अच्छी हैं’, श्यामा की माँ ने उत्तर दिया। फिर उसने नंदा से कहा, ‘नंदा, तुम और पप्पू तैयार हो जाओ। थोड़ी देर से हम सब अस्पताल चलेंगे।’
‘मम्मी के पास’, पप्पू ने पूछा।
‘हाँ, बेटा’, श्यामा की माँ ने कहा।
थोड़ी देर बाद नंदा और पप्पू बाल सँवार कर, अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो गये। श्यामा की माँ ने दूध की बोतल तथा अन्य चीजें थैली में रखीं और नंदा व पप्पू से चलने के लिए कहा। पप्पू जूते पहनकर पापा के पास पहुँचा। पापा अखबार पढ़ने में तल्लीन थे। कुछ क्षण चुपचाप खड़े रहकर उसने पापा को हिला दिया और बोला, ‘हम अस्पताल जाएँ पापा ? मम्मी को बुला लाएँ ?’ पापा चौंक पड़े।
‘हाँ, बेटा। हो आओ अस्पताल। पर मम्मी को अभी मत लाना। चार-पाँच दिन बाद आएंगी मम्मी’, पापा ने पप्पू के गाल थपथपाते हुए प्यार से कहा।
‘नहीं पापा, हम मम्मी को लाएंगे। उनके बिना हमें अच्छा नहीं लगता है।’ पप्पू ने भारी गले से कहा।
‘अच्छा, अच्छा। अभी तो जाओ। नंदा, लो यह रुपया। तुम लोग कुछ खरीद लेना’, पापा ने सौ रुपये का नोट नंदा को देते हुए कहा।
आॅटो में बैठकर वे लोग अस्पताल पहुँचे। रास्ते भर पप्पू और नंदा बातें करते रहे। अस्पताल आया तो वे लोग आॅटो से उतरे। पप्पू की उंगली नंदा ने पकड़ ली। बहुत से लोग आ-जा रहे थे। कइयों के हाथों में दवाइयाँ और डाॅक्टर के परचे थे। कभी-कभी नर्सें बगल से खटपट खटपट करतीं तेजी से निकल जातीं। सफेद स्वच्छ कपड़ों में तनकर चलने वाली स्मार्ट नर्सें पप्पू को बड़ी अच्छी लगीं।
तीन-चार बरांडे और कई कमरे पार कर श्यामा की माँ के साथ नंदा और पप्पू एक कमरे में घुसे। लोहे के पलंग पर मम्मी लेटी हुई थीं। नंदा तो सीधे जाकर मम्मी के पास खड़ी हो गई पर पप्पू कुछ दूर से ही मम्मी को टुकुर टुकुर ताकने लगा। उसकी आँखों में आश्चर्य तैर आया था और चेहरा गंभीर हो उठा था।
सफेद, रूखे से चेहरे वाली मम्मी उसे अजीब लग रही थीं। ऐसा तो उसने मम्मी को पहले कभी नहीं देखा था।
‘आ गईं, नंदा’, मम्मी बोली और उन्होंने मुस्कराकर पप्पू को बुलाया, ‘आओ, पप्पू देखो यह छोटी-सी गुड़िया। तुम इसे खिलाओगे न ?’ मम्मी अपने बगल में लेटी बच्ची की ओर इशारा कर कह रही थीं।
पप्पू सहमा-सा मम्मी के पलंग के पास आकर खड़ा हो गया। नंदा ने उसे उठाकर पलंग पर बिठा दिया। पप्पू ने देखा, सफेद कपड़ों में लिपटा एक छोटा-सा लाल चेहरा आँखें बंद किये हुए पड़ा हुआ है। एक छोटी गुड़िया-सी दिख रही थी वह। पप्पू उसे घूरकर देखने लगा।
इतने में ही डाॅक्टरनी राउंड लेने आईं। वह मम्मी के पलंग के पास आकर पूछने लगीं, ‘कहिए, कैसी तबियत है आपकी ?’
‘ठीक है। थोड़ा कमर में दर्द हो रहा है।’ मम्मी ने उत्तर दिया, ‘अच्छा, एक इंजेक्शन लगवा देती हूँ। यह आपका बाबा है ?’ पप्पू की ओर इशारा कर डाॅक्टरनी ने पूछा।
‘हाँ, यह मेरा पप्पू है’, मम्मी ने उत्तर दिया।
‘बड़ा प्यारा है’, कहते हुए डाॅक्टरनी ने पप्पू के गालों पर हाथ फेरा। उसने सहमकर अपना सिर पीछे कर लिया।
‘क्यों पप्पू, गुड़िया को खिलाओगे न ? यह तुम्हारी छोटी-सी नन्ही बहन है। अब तो तुम भाई साहब बन गए हो।’ डाॅक्टरनी ने पप्पू से कहा।
पप्पू ने समझदार लड़कों की तरह अपना सिर हिलाया। डाॅक्टरनी मुस्कराती हुई चली गई।
अब पप्पू का मुँह खुला। बोला, ‘मम्मी, यह गुड़िया उन्होंने दी है ?’ और उसने जाती हुई डाॅक्टरनी की ओर इशारा किया। ‘हाँ, बेटा। अच्छी है न ? तुम भाई साहब बन गये हो। बड़े हो गये हो तुम अब।’ मम्मी ने प्यार भरे शब्दों में कहा।
पप्पू खुश हो गया। वह अब भाई साहब बन गया है। गुड़िया उसे ‘भाई साहब’ कहेगी, पप्पू ने सोचा। उसके चेहरे पर गर्व झलक आया। आँखों में प्यार भर आया और ललक भरी आँखों से उसने गुड़िया की ओर देखा।
थोड़ी देर बाद श्यामा की माँ के साथ नंदा और पप्पू चलने लगे तो मम्मी ने दोनों बच्चों को समझाया, ‘नंदा, तुम पापा और पप्पू का काम कर दिया करो। घर की फिक्र रखना। और पप्पू तुम बेटा, तंग मत करना नंदा दीदी को। अब तुम बड़े हो गये हो। अपना काम खुद कर लिया करो और रोना मत बेटा’, मम्मी ने बड़े दुलार से पप्पू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
पप्पू ने गंभीरता से अपना सिर हिला दिया।
‘मम्मी, तुम घर कब आओगी ?’ पप्पू ने पूछा। उसका गला भर आया था।
‘जल्दी ही आऊंगी बेटा। तीन-चार दिन में ही। अब तुम लोग घर जाओ।’ मम्मी ने कहा।
श्यामा की माँ, नंदा और पप्पू पैदल ही घर की ओर चल पड़े। घर कोई दूर नहीं था और कोई जल्दी भी नहीं थी।
‘कित्ती-सी है गुड़िया !’ पप्पू बोला।
‘हाँ, बिल्कुल गुड़िया-सी’, नंदा ने उत्तर दिया।
‘पर अभी आँखें नहीं खोलती’, पप्पू और नंदा अपस में मुन्नी की बातें करते चल रहे थे।
सड़क के किनारे एक खिलौने वाला दिखाई दिया। कई तरह के खूबसूरत खिलौने सजे-सजाये रखे थे। नंदा और पप्पू खड़े होकर उन्हें देखने लगे। तरह-तरह के जानवर, पक्षी, गुड्डे और गुड़िया रखे हुए थे। पप्पू को एक गुड़िया पसंद आई। उसने नंदा से कहा, ‘दीदी, यह गुड़िया ले लो। हम, तुम और मुन्नी मिलकर खेलेंगे।’
गुड़िया बड़ी सुंदर थी। हरे रंग की स्कर्ट, गुलाबी रंग का टाॅप और सुनहरे रंग के गहने पहने गुड़िया बड़ी प्यारी लग रही थी। नंदा ने वह गुड़िया खरीद ली और पप्पू को दे दी। पप्पू कुछ क्षण तक आँखें मटकाता प्रसन्न मुद्रा में उसे ताकता रहा। नंदा ने जब उसका हाथ खींचते हुए चलने को कहा तब उसका ध्यान टूटा।
गुड़िया बगल में दबाये पप्पू घर आया। पापा ने दरवाजा खोलते हुए पूछा, ‘आ गये ! देख आये गुड़िया को ? कहो ! कैसी लगी ?’
‘गुड़िया अच्छी है पापा। वह हमें भाई साहब कहेगी। अब हम बड़े हो गये ... हैं न, नंदा दीदी ?’ पप्पू ने नंदा की ओर देखकर कहा और आगे बढ़कर गुड़िया टेबल पर रख दी। फिर अपने जूतों के लैस खोलने लगा।
‘अच्छा, तुम्हें भाई साहब कहेगी गुड़िया ! अरे वाह ! अब तो तुम भाई साहब बन गये। अरे, यह क्या लाए ? देखें तो’, कहते हुए पापा गुड़िया उठाकर देखने लगे।
‘अरे, अरे। वहीं रखी रहने दीजिये। गुड़िया गिर पड़ी तो उसे अस्पताल भेजना पड़ेगा न’, पप्पू ने तेज स्वर में बड़े रौब से कहा।
‘ओहो ! अब तुम बड़े हो गये हो न, भाई साहब !’ गुड़िया ज्यों की त्यों मेज पर रखते हुए पापा बोले।
चार साल के पप्पू की ओर वह आँखें फाड़कर देख रहे थे।