हरिकृष्ण तैलंग : व्यक्तित्व और कृतित्व परिचय
27 दिसंबर 1934 को राजा बिलहरा (सागर) में वहाँ के प्रकांड संस्कृतज्ञ पंडित मुरलीधर तैलंग के बड़े पुत्र हरिकृष्ण तैलंग ने युवावस्था में ही बतौर बाल साहित्यकार अपनी देशव्यापी पहचान गढ़ ली थी। उनकी माँ का नाम लक्ष्मीबाई था। उनके तीन छोटे भाई सुरेंद्र, देवेंद्र और रवीन्द्र हैं। आकाशवाणी में कार्यरत रवीन्द्र तैलंग का असामयिक निधन हो चूका था। शारदा, शशि, इंदु, सिंधु और संतोष नामक पाँच बहनों में सिर्फ एक बहन श्रीमती इंदुप्रभा वर्तमान में भोपाल की मंदाकिनी कालोनी में अपने पुत्र प्रवीण और राकेश के साथ निवासरत हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती सुमन, जो खुद एक शिक्षक रहीं और भोपाल के राजा भोज हायर सेकंडरी स्कूल से रिटायर्ड हुईं, पुत्र अभिनव, पुत्रवधु साधना, पौत्र पर्व, पौत्री पूर्वी एवं बड़ी पुत्री नंदा, दामाद अशोक व्यास, नाती उत्सव तथा छोटी पुत्री प्रज्ञा, दामाद एच. प्रकाश भट्ट, नाती प्रवेश, नातिन प्राची शामिल हैं।
हरिकृष्ण तैलंग ने किशोरावस्था तक अपने चाचाओं के घर रहकर स्कूली शिक्षा कई नगर-कस्बों - भंडारा, नागपुर, गोंदिया, सागर आदि में रहकर की। तीसरी कक्षा तक वे अपने मूल गाँव राजा बिलहरा में पढ़े। फिर महाराष्ट्र के भंडारा में और नागपुर के तुलसी हिंदी प्रायमरी स्कूल में चौथी कक्षा पास की। पाँचवी कक्षा के लिए उनका एडमिशन जबलपुर के हितकारिणी हाई स्कूल में हुआ। गोंदिया में रहकर छठी कक्षा की पढ़ाई की और सातवीं कक्षा के लिए सागर के कटरा मुहल्ले में स्थित म्युनिसिपल हाई स्कूल पहुँचे। वहाँ उन्होंने 11वीं यानी तब की हायर सेकेंडरी परीक्षा पास कर तब के प्रतिष्ठित "सागर विश्वविद्यालय" से बी.काॅम. और फिर एम.ए. (हिंदी) और बी.एड् किया। यूनिवर्सिटी में पढ़ते समय सागर में ही उनकी नौकरी रजिस्ट्रार कार्यालय में लग गई, पर वहाँ की कार्यप्रणाली उन्हें रास न आई। जमीन-जायदाद की रजिस्ट्री आदि में जो बंदरबाँट-काला पीला होता है, उसके लिए उनका स्वभाव अनुकूल न था। बाद में उनके ससुर नूतनकुमार तैलंग, जो तब जिला शिक्षाधिकारी थे और विलनीकरण आंदोलन में शंकरदयाल शर्मा के सक्रिय सहयोगी भी थे, के कहने पर 1955 में स्कूली शिक्षा विभाग में अपर ग्रेड टीचर की नौकरी प्रारंभ की। अध्यापन कर्म की शुरुआत उन्होंने भोपाल के "जहाँगीरिया हायर सेकेंडरी स्कूल" से की। ईमानदारी, कर्मठता और साफगोई के परिणामस्वरूप उनका तबादला कई जगहों जैसे रायपुर, हरदा, नरसिंहपुर, विदिशा, बैरसिया आदि में हुआ पर उन्होंने जोड़तोड़ कर कभी तबादला रुकवाने की कोशिश करने की बजाय समर्पण भाव से अध्यापन और कर लेखन करना पसंद किया। 32 वर्ष अध्यापन करने के पश्चात उन्होंने 1987 में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ली। तब वे बेरसिया के एक गाँव अर्रावती में बतौर हेड मास्टर कार्यरत थे। वहाँ उन्होंने न सिर्फ बच्चों और शिक्षकों में रोचक तरीके से शिक्षण करने का गुर सिखाया बल्कि वृक्षारोपण, साफ-सफाई, समाज सेवा आदि की प्रेरणा भी दी। एक हनुमान मंदिर की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वालेंटियर रिटायरमेंट के बाद वे घर नहीं बैठे, बल्कि लेखन से जुड़े पत्रकारिता क्षेत्र में शामिल हो अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली। वे ‘राज्यश्री’, ‘समझ झरोखा’ (वन्या प्रकाशन मप्र शासन उपक्रम), ‘दैनिक जागरण", भोपाल में लगभग 12 वर्ष वरिष्ठ सहयोगी संपादक रहे। ‘दैनिक जागरण’ में उनके अनगिनत संपादकीय को सुधी पाठक आज भी याद करते हैं।
बाल साहित्य में श्री हरिकृष्ण तैलंग ऐसा चिर परिचित नाम रहा है, जिन्होंने हमेशा बाल साहित्य के विकास, उसकी सम्मानीय स्थापना हेतु उत्कृष्ट कार्य किया। बच्चों और किशोर पाठकों के लिए उन्होंने आधुनिक बोध से सम्पन्न बाल कहानियाँ, वैज्ञानिक चेतना से ओत-प्रोत साहित्य रचा ताकि बाल साहित्य में परंपरागत राजा-रानी और परी लोक से इतर तर्कपूर्ण और जानकारीप्रद रचनाएँ लिखी जाएँ। आरंभिक दशक में ही साहित्यिक जगत में उनका सम्मानजनक स्थान बन गया, साथ ही युवाओं को भी प्रोत्साहित, प्रेरित करते रहे। उन्होंने न सिर्फ उत्कृष्ट बाल साहित्य का सृजन किया,वरन अन्य विधाओं में भी अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज़ की। वे सहज, सरल, मिलनसार और मददगार इन्सान भी थे। हरिकृष्ण तैलंग ने लगभग 20 वर्ष की उम्र में लेखन प्रारंभ किया और अपने मृत्य दिवस, हिंदी दिवस 14 सितंबर 2014 तक जारी रहा। उनकी आखिरी दो पुस्तकें ‘नाम एक नगर अनेक’ और ‘नाम एक व्यक्ति अनेक’ प्रकाशनाधीन हैं। रोचक शैली में लिखीं इन ज्ञानवर्धक पुस्तकों में ऐसे नामचीन शहरों और प्रख्यात व्यक्तियों का परिचय है जो एक नाम के हैं पर अपनी स्वतंत्र पहचान रखते हैं। उदाहरणार्थ ताजमहल न सिर्फ आगरा में है बल्कि देश-विदेश के कई दूसरे शहरों में भी हैं। मुंबई का प्रख्यात होटल ताज हो या भोपाल की ऐतिहासिक इमारत ताजमहल, सभी को श्री तैलंग ने शामिल किया है। इसी तरह अशोक नामक हस्तियों में सम्राट अशोक के साथ वर्तमान समय के राजनेता अशोक गहलोत और कालजयी अभिनेता अशोक कुमार और कवि अशोक वाजपेयी के साथ ही उदघोषक अशोक वाजपेयी के बारे में भी पर्याप्त जानकारी संग्रहित की।
लेखन के प्रारंभिक वर्ष, सन् 1954 से ही देश की प्रतिष्ठित और बहु-प्रसारित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का प्रकाशन होने लगा था। मात्र 27 वर्ष की युवावस्था में 1961 में ‘पराग’ के खिलौना विशेषांक में उनकी कहानी ‘गुडि़या का विवाह’ पर मुखपृष्ठ बना तथा टाइम्स आॅफ इंडिया ग्रुप की पत्र-पत्रिकाओं में उस विशेषांक का विज्ञापन भी उसी कहानी पर आधारित था। बालसखा, नंदन, बालभारती, बालहंस, समझ झरोखा, चकमक आदि में भी बालकों के लिए कहानियाँ प्रकाशित हुईं। धर्मयुग, सारिका, दिनमान, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, नवनीत, समाज कल्याण, कथालोक, हिमप्रस्थ, शिखरवार्ता, पालिका समाचार, भारती, मध्यप्रदेश संदेश, साक्षात्कार, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, जनसत्ता, पंजाब केसरी, अमर उजाला, ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, नवभारत, नईदुनिया, लोकमत समाचार, आज, सन्मार्ग, दैनिक जागरण, राज एक्सप्रेस आदि लगभग सभी प्रतिष्ठित और बहु-प्रसारित पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, आलेख, व्यंग्य आदि का निरंतर प्रकाशन हुआ। आपात्काल के दौरान प्रकाशित ‘सारिका’ के एक अंक में उनकी लघुकथा ‘शिकारी और भोले कबूतर’ बेहद चर्चित रही। अनेक संपादकों ने उनकी बाल कथाएँ, लघुकथाएँ और व्यंग्य को अपने संग्रहों में शामिल किया। मनोरमा वार्षिकी 2002 में ‘बीसवीं सदी में बाल साहित्य’ आलेख में प्रतिनिधि कहानीकारों के साथ विशेष रूप से नामोल्लेख मिलता है। लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व प्रख्यात बाल साहित्यकार डाॅ. राष्ट्रबंधु के संपादन में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ‘बाल साहित्य समीक्षा’ (कानपुर) का अंक भी निकला।
श्री तैलंग ने अनेक विधाओं में लिखा। बाल साहित्य की प्रकाशित पुस्तकों में ‘जूता चर्चा’ (मप्र साहित्य परिषद का पद्माकर पुरस्कार संग्रह), ‘पर्यावरण एवं संतुलित आहार’ (कोलकाता से मनीषा पुरस्कार प्राप्त नाटक संग्रह), ‘कथाओं में नाचता मोर’ (इलाहाबाद शकुंतला सिरोठिया पुरस्कार प्राप्त संग्रह), ‘बात का बतंगड़’ (हिंदी सभा, सीतापुर से पुरस्कार प्राप्त संग्रह), ‘मेढ़क की करामात’, ‘बकरी के जिद्दी बच्चे’, ‘अच्छे दोस्त बनाओ’ प्रमुख हैं। नवसाक्षर साहित्य में उन्होंने ‘फलो का राजा आम’, ‘प्याज और लहसुन’, ‘हमारा गाँव हमारा देश’, ‘वाहन कैसे बने कैसे चले’ पुस्तकें लिखीं जिन्हें भारत सरकार की नवसाक्षर प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला। वे लिटरेसी हाउस, लखनऊ के सेमीनार्स, वर्कशॉप में भी विद्वान के रूप में आमंत्रित होते रहे। वहाँ रहकर उन्होंने ‘बोलती पुतलियाँ’ पुस्तक लिखीं जो लिटरेसी हाउस द्वारा पुरस्कृत और प्रकाशित की गई। सामाजिक चेतना फैलाने के लिए उन्होंने ‘जल: जीवन और जहर’ तथा ‘पर्यावरण एवं संतुलित आहार’ नामक पुस्तकें लिखीं।
लगभग 1984 में उन्होंने व्यंग्य लेखन की शुरुआत की और पहला ही व्यंग्य ‘कुत्ता पालक कालोनी’ देश के सर्वाधिक पठनीय दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रकाशित हुआ। बाद के प्रकाशित व्यंग्यों -‘आम आदमी पर बहस: अंतर्कथा’ डाॅ. धर्मवीर भारती ने ‘धर्मयुग’ और राजेंद्र अवस्थी ने ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में ‘हास्य क्या है, व्यंग्य क्या है’ छाप कर प्रमुख व्यंग्यकारों में शामिल किया। उनका व्यंग्य संग्रह ‘कुत्ता पालक कालोनी’ और ‘घासचोरी का मुकदमा’ बेहद चर्चित रहे। ‘घास चोरी का मुकदमा’ को तो "मप्र साहित्य परिषद" का प्रतिष्ठित ‘शरद जोशी सन्मान’ और ‘मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन का’ वागीश्वरी सन्मान प्राप्त हुआ। मप्र साहित्य परिषद के पूर्व निदेशक डाॅ. देवेंद्र दीपक हरिकृष्ण तैलंग की एक पुस्तक ‘अपंग जिनसे दुनिया दंग‘ को विशेष रूप से याद करते हैं। उन्होंने उसी से प्रेरणा पाकर भारत भवन में राष्ट्रीय स्तर का एक कवि सम्मेलन करवाया जिसमें नेत्रहीन रचनाकारों ने शिरकत की थी। इसके अलावा श्री तैलंग ने ‘संस्कृत कथाएँ’ और ‘बुद्ध चरितम्’ नामक पुस्तकें भी लिखीं जिनमें संस्कृत साहित्य की महान रचनाओं का संक्षिप्त अनुवाद शामिल है। यही नहीं, उनकी लिखी ‘सामान्य ज्ञान‘ (जूनियर) और ‘सामान्य ज्ञान’ (सीनियर) भी जानकारीप्रद रहीं। प्रारंभ से ही उनकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी भोपाल तथा लखनऊ से होता रहा। वे दूरदर्शन दिल्ली और भोपाल केंद्र से भी दिखाई दिए। आकाशवाणी, भोपाल के वे दो वर्ष शैक्षिक प्रसारण सलाहकार भी रहे।
हालाँकि किसी वाद अथवा खेमेबाजी में उनका विश्वास या रुचि कभी नहीं रही। पर उन्होंने कई संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभाई। विदिशा में पद स्थापना के दौरान वे हिंदी साहित्य सम्मेलन, विदिशा के अध्यक्ष रहे और तब अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों की खूब सराहना हुई। जनवादी लेखक संघ, सागर सांस्कृतिक परिषद, मप्र लेखक संघ के पूर्व पदाधिकारी भी रहे। लिटरेसी हाउस, लखनऊ, राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद, दिल्ली, मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल, मप्र पाठ्य पुस्तक निगम, मप्र लोक शिक्षण को उन्होंने लेखकीय सहयोग तथा कुछ शैक्षिक योजनाओं/ पाठ्य पुस्तको की रूपरेखा तैयार करने में सहयोग दिया।
उनकी रचनाओं को ढेर सारे पुरस्कार-सन्मान मिले। नीलकंठेश्वर महाविद्यालय (खंडवा) से प्रादेशिक निबंध पुरस्कार, मप्र लोक शिक्षण से सर्वोत्तम बाल साहित्य प्रतियोगिता में दो पुरस्कार, मप्र लोक शिक्षण की शैक्षिक निबंध प्रतियोगिताओं में तीन वर्षों तक लगातार प्रथम पुरस्कार, मप्र साहित्य परिषद द्वारा पद्माकर तथा शरद जोशी पुरस्कार, मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार, कोलकाता की संस्था मनीषिका का मनीषा पुरस्कार, इलाहाबाद में शकुंतला सिरोठिया पुरस्कार, कानपुर में बाल कल्याण परिषद द्वारा पुरस्कार, बलिया में नागरी बाल साहित्य संस्थान का पुरस्कार, दतिया में हिंदी साहित्य समिति द्वारा पुरस्कार, भोपाल में भीष्म सम्मान, अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन द्वारा दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के हाथों ‘साहित्यश्री’ तथा बंगलौर में ‘भारत भाषा भूषण’ उपाधि से विभूषित हुए। इलाहाबाद में ‘मीरा स्मृति सम्मान’ और भोपाल के ‘बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र’ से भी वे सम्मानित हुए। ‘करवट कला परिषद’ ने गत 25 दिसंबर 2013 को ‘कला साधना सम्मान’ और इसी वर्ष 17 जून 2014 को उन्हें भोपाल के ‘दुष्यंत संग्रहालय’ में सत्यस्वरूप माथुर श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान से विभूषित किया गया। यही नहीं, 14 सितंबर 2014 को मरणोपरांत भी श्री तैलंग को "जेके हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर" ने ‘आधुनिक दधिचि’ का सम्मान मिला।
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